देश के नौनिहालों ने किया महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के जीवन पर आधारित नाटक "उलगुलान" की प्रस्तुति
झुग्गी- झोपड़ी में रहने वाले 34 बाल कलाकारों अपने नाट्य प्रस्तुति से दर्शकों को किया मंत्रमुब्ध
नई दिल्ली : स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में संस्कार भारती दिल्ली द्वारा गुमनाम सेनानियों के प्रति लोगों में जागरूकता प्रसारित करने की दृस्टि से "कला संकुल" में महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी "बिरसा मुंडा" के जीवन पर आधारित नाटक "उलगुलान" की प्रस्तुति का सफल आयोजन किया गया, जिसमें देश के भविष्य के 34 बाल कलाकारों ने प्रस्तुति दी।
नाट्य विधा संयोजक अवतार साहनी के अनुसार ""प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रारंभ किये गए स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अंतर्गत संस्कार भारती के दिल्ली प्रान्त पूरे वर्ष स्वतंत्रता आंदोलन के गुमनाम सेनानियों के योगदान को रेखांकित करने और उनका पुण्य स्मरण करने के क्रम में अपनी सभी विधाओं की प्रस्तुतियाँ करेंगे ताकि आमजन उन्हें जान सके। इस कड़ी में नाट्य विधा का यह पहला कार्यक्रम है, भविष्य में नाट्य विधा दिल्ली प्रान्त ऐसी ही अनेक प्रस्तुतियां देगी। " "
नाटक के निर्देशक एवं सूत्रधार स्थापित नाट्यधर्मी रोहित त्रिपाठी के अनुसार "स्वाधीनता के अमृतमहोत्सव के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सुझाव पर "आदिवासी नेता बिरसा मुंडा " पर नाटक बनाने की प्रेरणा मिली। जिसका हमने अलग अलग किताबो एवं उपलब्ध ऎतिहासिक जानकारियों का समन्वय कर "उलगुलान" नाटक की संकल्पना की उसमे विशेषरूप से कल्याणपुरी-त्रिलोकपुरी के गरीब वर्ग (स्लम क्षेत्रों के बच्चो का चुनाव किया गया। नाटक के सभी 34 बाल कलाकार स्कुल में पढ़ने वाले है जिनकी आयु 10 से लेकर 15 वर्ष तक की है, जो की कल्याणपुरी-त्रिलोकपुरी के स्लम क्षेत्रों से आते है।
बिरसा मुंडा का पात्र बने विनय कुमार 15 वर्ष के हैं, जो ओपन यूनिवर्सिटी से 12 की पढाई कर रहे हैं। उनके अनुसार " पहले उन्हें बिरसा मुंडा के बारे में कुछ भी नहीं पता था पर जब उनके बारे में पता चला तो उन्हें गर्व हुआ वो एक ऐसे व्यक्तित्व का पात्र निभा रहे है, जिनको आदिवासी अपने भगवान के रूप में मानते है। वह संस्था द्वारा दिए जा रहे प्रशिक्षण एवं सहयोग से प्रेरित होकर अब थिएटर कलाकार के रूप में स्थापित होना चाहते है।
"उलगुलान" के बारे में:- यह नाटक बिरसा मुंडा के बारे में है, जो मुंडा जनजाति के थे और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक नेता और लोकनायक थे। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में पैदा हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए। विद्रोह मुख्य रूप से खूंटी, तामार, सरवाड़ा और बंदगांव के मुंडा बेल्ट में केंद्रित था। बिरसा को ईसाई मिशनरियों को चुनौती देने और मुंडा और उरांव समुदायों के साथ-साथ धर्मांतरण गतिविधियों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए जाना जाता है।