आत्मसाक्षात्कार को आतुर साधकों को राह दिखाने के लिए ईश्वर द्वारा भेजे गए संत थे योगानंद- स्वामी स्मरणानंद
प्रेमावतार परमहंस योगानंद के आविर्भाव दिवस पर नोएडा आश्रम हुए भक्ति गीत,संगीत और संन्यासिओं के आध्यात्मिक प्रवचन
एस एन वर्मा
नोएडा। नोएडा सेक्टर 62 स्थित योगदा आश्रम में प्रेमावतार परमहंस योगानंद का 130 वां जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर लगातार दो दिनो तक आश्रम में भजन संगीत,ध्यान तथा प्रवचन का भी आयोजन हुआ।
विदित हो कि अमेरिका तथा यूरोप में ईश्वर से साक्षात्कार की योग विद्या से अवगत कराने वाले परमहंस योगानंद स्वामी श्री युक्तेश्वर के शिष्य थे।इनके द्वारा लिखित पुस्तक योगी कथामृत विश्व के सबसे लोकप्रिय पुस्तकों में से एक है। विश्व को परमहंस योगानंद के आध्यात्मिक योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उनके सम्मान में उनके नाम पर दो बार डाक टिकट जारी कर चुकी है।
जन्मोत्सव के पूर्व संध्या पर आध्यात्मिक प्रवचन देते हुए योगदा के स्वामी स्मरणानंद ने कहा कि परमहंस योगानंद ईश्वर द्वारा नियुक्त संत थे जिनका धरती पर अवतरण पूर्व और पश्चिम के देशों को ज्ञान प्रदान करने तथा आघ्यात्मिक रूप से जोड़ने के लिए हुआ था। उन्होंने बताया कि लगभग हर देश में योगदा सत्संग सोसायटी या एस आर एफ के आश्रम या केंद्र स्थापित हो चुका है जहां ईश्वर मिलन की राह पर चलने वाले साधकों को वैज्ञानिक पद्धति से योग की शिक्षा दी जाती है।
जन्मोत्सव के दिवस पर आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत में स्वामी अमरानंद जी ने कई कास्मिक भजन गाए।उसके उपरांत ब्रहमचारी आद्यनंद ने परमहंस कें बारे में संस्था के तीसरे अघ्यक्ष दया मां संस्मरण को सुनाते हुए बताया कि योगानंद का स्वभाव शांत और निश्छल तथा चेहरा देदिप्यमान था। वे सहज स्वभाव के थे तथा किसी के इम्प्रेस करने के लिए नहीं बोलते थे। उन्हें जो भी ज्ञान सहज रूप से अंदर से आता था वहीं वे बोलते थे।उन्हें दिखावा पसंद नहींं था।उनमें विद्वता और बुद्धिमता भरा हुआ था। वे किसी भी प्रश्नों के उत्तर दे दिया करते थै।
दया मां अपने प्रवचन में बताया करती थी कि परमहंस योगानंद की आंखों में तेज था तथा उनमें संमुद्र की अथाह गहराई समाए हुए था।वे कहा करते थे कि सभी कार्यों के ईश्वर का कार्य समझ कर उमंग और उत्साह से करना चाहिए। वे अनुशासन पंसद करते थे तथा अपने शिष्यों से इसी तरह के व्यवहार की अपेक्षा करते थे।
आज पूरे विश्व के आत्मसाक्षात्कार के इच्छूक साधक योगानंद के ऋणि है क्योकि परमहंस जी ने संसार को ईश्वर प्राप्ति का एक मार्ग बता गए हैं जो विरले ही किसी संत ने बताया हो।
समारोह का अंत पुष्पाजंलि और ब्रहमचारी धैर्यानंद तथा ब्रहमचारी निर्लिप्तानंद द्वारा गाए मधुर भजनों के साथ हुआ।