*अफसर प्रेम है, जनता से दूर है और आत्मघाती है मोदी का मंत्रिमंडल*

 *राष्ट्र चिंतन* 


 *आचार्य विष्णु श्रीहरि* 

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नरेन्द्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का गठन भी कर लिया है और मंत्रियों के विभागों का वितरण भी कर दिया। मंत्रियों के विभागों को देखे तो सिर्फ बोतल बदला है, शराब वही पुरानी है। कहने का अर्थ यह है कि दूसरे कार्यकाल के मंत्रिमंडल की ही छाया इस तीसरे कार्यकाल के मंत्रिमंडल पर है। बड़े नेता जिनके पास जो विभाग पहले से थे वे विभाग फिर से उन्हें आंवटित कर दिया गया। जैसे अमित शाह फिर से गृहमंत्री बन गये, राजनाथ सिंह फिर से रक्षामंत्री बन गये, जयशंकर फिर से विदेश मंत्री बन गये, धर्मेन्द्र प्रधान फिर से शिक्षा मंत्री बन गये, निर्मला सीतारमण फिर से वित्तमंत्री बन गये, नितिन गडकरी फिर से सडक परिवहन और राजमार्ग मंत्री बन गये,अश्विनी वैष्ण्व फिर से रेल मंत्री बन गये। सिर्फ दो ही ऐसे चर्चित नेता हैं जिन्हें अलग से नये मंत्रालय मिले हैं, ये दोनों दूसरे कार्यकाल में मंत्री थे नहीं। पहला नाम है राष्टीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का जिन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय मिला है जबकि दूसरा नाम मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान का है जिन्हें कृषि मंत्रालय दिया गया है और साथ में ग्रामीण मंत्रालय भी दिया गया है।

           नरेन्द्र मोदी के तीसरे मंत्रिमंडल की विषेषता क्या है? क्या जनता से मिले सबक से निकला हुआ मंत्रिमंडल कहा जा सकता है? क्या उच्च कोटी का मंत्रिमंडल कहा जा सकता है? क्या अपने इस मंत्रिमंडल के माध्यम से नरेन्द्र मोदी अपनी पुरानी चमक-दमक वापस ला सकते हैं? नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल की विशेषता थके हारे नेताओं, जनता से दूर रहने वाले नेताओं, अफसरशाही पर विश्वास करने वाले नेताओं की टोेली है? अश्विनी वैष्णव, हरदीप पूरी, जयशंकर जैसे अफसरों पर विश्वास करना क्या नरेन्द्र मोदी की कमजोरी फिर से सामने नहीं आयी हैं? अफसरों जनता के प्रति जिम्मेदारी कम ही प्रदर्शित करते हैं, जनता से इन्हें दोस्ती बहुत ही कम होती है। फिर चुनाव नहीं लडने वाली निर्मला सीतारमन, जेपी नडडा आदि जनता से दूर ही रहने वाले हैं। चुनाव नहीं लडने वाले नेता कभी भी जनमुखी नहीं हो सकते है। इसलिए निर्मला सीतारमन को हार का डर ही नहीं होगा तो फिर जनता की समस्याओं और कल्याण के प्रति वह कैसे समर्पित और सजग होगी। उपर्युक्त नेता आम गरीब और गरीब किसान को खुजली ही समझते हैं।

                     जेपी नड्डा और शिवराज सिंह चैहान के मंत्रालयों को लेकर काफी कुछ चर्चा में हैं, आखिर क्यों? जेपी नड्डा मंत्री नहीं बनना चाहते थे, वे भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष रहना ही चाहते थे, क्योंकि राष्टीय अध्यक्ष के पास ही पूरी पार्टी की कमान होती है। लेकिन जेपी नड्डा को राष्टीय अध्यक्ष की कुर्सी पर आगे भी जारी रखना, स्वीकार नहीं था। पार्टी अध्यक्ष के रूप में जेपी नड्डा का प्रदर्शन बहुत ही घटिया और कमजोर तथा आत्मघाती जैसा रहा है। जेपी नड्डा ने भाजपा को एक जाति की यूनियन के रूप में चलाया और जातिवाद फैलाया। ऐसा मानना भाजपा के बाहरी थींक टैंक का है। स्वयं नरेन्द्र मोदी भी यह मानते हैं कि जेपी नड्डा ने चुनावी मोहरे बैठाने में गलती की है, सही स्थिति का आकलन करने में गलती की है, चुनाव प्रबंधन में सर्वश्रेष्ठ योगदान देने में असफल रहे हैं। भाजपा स्वयं के बल पर बहुमत हासिल करने में विफल रही है और मोदी युग में सबसे कमजोर प्रदर्शन की है। इसलिए जेपी नड्डा की जवाबदेही बनती है। जेपी नड्डा को पार्टी के राष्टीय अध्यक्ष से छुट्टी कर देना चाहिए था। लेकिन भाजपा और संघ में एक नियम है, इंतजार करो, भूल जाने दो फिर कार्रवाई करो, अभी कार्यक्षेत्र बदल दो, प्रमोशन कर दो फिर कुछ दिन के बाद छुट्टी कर दो। ऐसी स्थिति हमनें भाजपा के संगठनमंत्रियों के क्षेत्र में देखा है। मैंने भाजपा के एक संगठन मंत्री की बदनाम कारनामे को उछाला था और उसे भाजपा-संघ के प्रबंधन तंत्र को भेजा था। कुछ दिन बाद उस संगठनमंत्री को छोटे से राज्य से उठा कर उत्तर प्रदेश जैसे बडे राज्य की जिम्मेदारी दे दी गयी थी। उत्तर प्रदेश में भाजपा की इस बडी पराजय और जगहंसाई में कुछ योगदान उस संगठन मंत्री की भी रही होगी। पहले भी जेपी नड्डा स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं, स्वास्थ्य मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल संतोष जनक कतई नहीं था, एक अधिकारी के साथ उनका तनाव और विवाद सुर्खियों में था।

               शिवराज सिंह चैहान को कृषि और ग्रामीण विकास विभाग का मिलना बहुत कुछ संकेत देते हैं। नरेन्द्र मोदी को एक कर्मठ और अनुभवी राजनेता की जरूरत थी, जिनकी पृष्ठभूमि ग्रामीण संस्कृति की हो और उसकी संवेदनाएं भी ग्रामीण संस्कृति के साथ सहचर रहती हो। नरेन्द्र मोदी के पास जितने भी चेहरे थे उनमें सभी चेहरे शहरी और संभ्रात संस्कृति के थे, उदाहरण के तौर पर हम राजनाथ सिंह का नाम ले सकते हैं, नितिन गडकरी का नाम ले सकते हैं, निर्मला सीता रमन का नाम ले सकते हैं, जयशंकर का नाम ले सकते हैं। कई अन्य नाम ले सकते हैं। ये सभी नाम निश्चित तौर पर ग्रामीण पृष्ठभूमि के नहीं हैं और न ही ये सभी किसान और आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते हैं।

                  नरेन्द्र मोदी कृषि के क्षेत्र में कुछ नया करना चाहते हैं, किसानों का विश्वास जीतना चाहते हैं। किसान आंदोलनों के कारण नरेन्द्र मोदी पर विभिन्न आरोप लगे हैं, उन्हें किसानो का हत्यारा तक कहा गया। कई किसानों की जान भी गयी है। किसानों के अंदर नरेन्द्र मोदी के प्रति घृणा और विरोध आज भी बहुत है। लोकसभा चुनावों में किसान बहुलता वाले क्षेत्रों में भाजपा की पराजय भी यही कहती है। हरियाणा, पंजाब और पश्चिम उत्तर प्रदेश और महाराष्ट में इसका असर देखने को मिला, इन क्षेत्रों में किसानों का दबदबा रहता है, किसानों ने भाजपा के खिलाफ जमकर वोट किये। शिवराज सिंह चैहान को कृषि मंत्री बना कर नरेन्द्र मोदी ने किसान की आय और उनकी समस्याओं का समाधान करना चाहते हैं। कृषि मंत्री का पद मिलते ही शिवराज सिंह चैहान ने कहा है कि कृषि क्षेत्र के लिए उनके पास काफी योजनाएं और नीतियां हैं, जिनको वह धीरे-धीरे और क्रमबद्ध तरीके से लागू करेंगे। नरेन्द्र मोदी ने कृषि मंत्री के तौर पर शिवराज सिंह चैहान को जो चुना है, यह सर्वश्रेष्ठ निर्णय है और इसका लाभ दूरगामी होगा।

                 ग्रामीण विकास के संदर्भ पर गंभीर चर्चा जरूरी है। भारत की आत्मा गांवों में बसती है। देश में ग्रामीण विकास की सर्वश्रेष्ठ नीति की जरूरत है। ग्रामीण विकास ही तय करेगा कि देश सही में विकसित है और देश के लोग समृद्ध है। नरेन्द्र मोदी ने गरीबी रेखा के क्षेत्र में बहुत बडा काम किया है और गरीबी रेखा की संख्या को घटाने में सफल भी रहे हैं। लेकिन अभी भी देश के गांव आत्मनिर्भर नहीं हुए हैं, गांव अभी भी विकास के सर्वश्रेष्ठ सफलता से वंचित हैं। गांवों में बिजली पहुंची है, नल से पानी पहुंचा है, शौचालय बने हैं, कच्चे से पक्के मकान बन गये हैं, उज्जवला योजना से गांव की झौपड़ियां भी प्रज्वलित हो रही हैं। पर रोजगार की कमी है। रोजगार की कमी से गांवो से पलायन जारी है। गांवों से होने वाले पलायन से शहरों पर बोझ बढता है, शहरों की व्यवस्था चरमराती है। दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, चेन्नई आदि देश के बडे शहर गांवों से होने वाले पलायन के शिकार हैं। अगर गांवों में ही रोजगार और विकास के साधन भी उपलब्ध हों तो फिर गांवों से होने वाले पलायन रूक सकता है, शहरों पर पडने वाले दबाव कम हो सकते हैं। ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में शिवराज सिंह चैहान नया अध्याय लिख सकते हैं।

                 नरेन्द्र मोदी, गैर राजनीतिज्ञ और अफसरशाही पर विश्वास करने का खामियाजा आगे भी भुगत सकते हैं। उन्होंने अश्विनी वैष्णव को रेल मंत्री फिर से बना कर बहुत बडी गलती की है, जिसकी जन सजा उन्हें मिल सकती है। अश्विनी वैष्णव काबिल हो सकते हें, ईमानदार हो सकते हैं, पर उनमें जनता की समस्याओं के प्रति सक्षमता नहीं है। रेलवे को जनमुखी बनाने में वे पहले ही विफल रहे हैं तो फिर इस बार रेलवे को जनमुखी बनाने में कैसे सफल हो सकते हैं? कई-कई घंटे लेट चलने वाले रेल गाड़ियों की समस्याएं वे दूर नहीं कर पाये। कई ऐसी नीतियां उनकी रही है जो सीधे तौर पर गरीबों पर बुलडोजर चलाती हैं, गरीबों के अधिकारों का हनन करती हैं। जनरल टिकट यात्रा के एक दिन पहले खरीदने का तुगलकी फरमान से गरीब जनता कितनी परेशान थी यह भी जगजाहिर है, हर रेल गाडियों में दो या फिर दो से अधिक जनरल डब्बे हुआ करते थे जिन्हें एक तक सीमित कर दिया गया। जनरल डब्बे अधिक होने से आम गरीब आदमी आरक्षण नहीं होने के बाद भी सफर कर लेता था। चुुनाव लडने से इनकार करने वाली निर्मला सीतारमन पहले से जनता से दूर रही है। जो शख्सियत जनता से दूर रहती है वह जनता को समृद्ध बनाने में अपना सव्रश्रेष्ठ योगदान कैसे दे सकती हैं? हरदीप पूरी की भी कोई खास काबीलियत अभी तक नहीं दिखी है। जयशंकर का विदेश मंत्रालय में प्रदर्शन ठीक-ठाक जरूर रहा है।

              अफसरयुक्त, जनता से दूर और संभ्रांत नेताओं से भरा मोदी का मंत्रिमंडल कोई करशिमा नहीं कर पायेगा, मोदी की छबि नहीं चमका सकता। मिले जन सबक से मोदी ने कोई सीख नहीं ली है। इसका खामियाजा तो नरेन्द्र मोदी को ही उठाना होगा। हम सिर्फ अपना नुकसान झेलकर भी सजग ही कर सकते हैं।







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