गाजियाबाद में हुआ शायरा माधवी शंकर के गजल संग्रह ‘बाकी इश्क में सब अच्छा है’ का विमोचन के साथ काव्य गोष्ठि का आयोजन



 




श्रोताओं ने उठाया शेरों-शायरी व गजल का जमकर आनंद , गुंजता रहा तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल

गाजियाबाद। कविनगर स्थित एक होटल में शायरा माधवी शंकर के गजल संग्रह ‘बाकी इश्क में सब अच्छा है’ का विमोचन तथा काव्य गोष्ठि का आयोजन किया गया। इस समारोह में दूर दराज से पधारे कवियों व शायरों ने अपनी रचनाएं पढ़ी। समारोह में उपस्थित श्रोताओं ने शेर और शायरियों को जम कर आनंद उठाया। समारोह एक महफिल में बदल गया।
इस कार्यक्रम की शुरुआत अतिथिगण फरहत एहसास, डा. हरिशंकर शिरोमणि, प्रवीण सक्सेना तथा हिमांशु शंकर द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। इस समारोह में विमोचन के साथ-साथ माधवी शंकर से गुफ़्तगू का भी सेशन था जिसमें उनकी शायरी पर बात की गई। गजल संग्रह के विमोचन के उपरांत फरहत एहसास साहब ने माधवी शंकर की किताब पर अपने विचार व्यक्त किए और उनकी किताब को एक बेहतरीन शायरी की किताब कहा। उनके कुछ शेर जैसे-‘बताओ दूसरी खामी तुम उसकी, मैं ये तो जानती हूँ बेवफा है, तुम्हें कुछ माधवी शंकर पता है, मुहब्बत जानलेवा सिलसिला है’ भी फरहत साहब ने पढ़े और उन पर बात की।

इसके बाद फरहत साहब की सदारत में एक काव्य गोष्ठी संपन्न हुई। सबसे पहले बरेली से आए अहमद अजीम ने अपना कलाम पेश किया। इसके बाद चराग शर्मा (चंदौसी), आशू मिश्रा(बरेली), आयुष चराग(जबलपुर), इकरा अम्बर (गाजि“याबाद), विकास राना (हिमाचल),अमीर इमाम(सम्भल), विनीत आशना(चंदौसी), पूनम मीरा (गुड़गाँव), नीना सहर(गुड़गाँव), तरूणा मिश्रा(गाजि“याबाद), सोनरूपा विशाल(बदायूं), प्रवीण सक्सेना(दिल्ली) और आखिर मे ग्रेटर नोएडा से आए सद्र ए मोहतरम फरहत एहसास साहब ने अपने कलाम से नवाजा३‘बस अभी सूरज निकल आएगा उस दीवार का, जितने साए हैं पस ए दीवार पकड़े जाएंगे।’ और ‘शहर में दहशत मचा रक्खी है उसकी जुल्फ न, धीरे-धीरे सब सर ए बाजार पकड़े जाएंगे।’

विनीत आशना ने शेर पढ़ा, दुनिया को यार चाहिए याराना चाहिए, जो तेरे यार हैं उन्हें इतराना चाहिए। प्यार में आचमन नहीं होता.. सोनरूपा का बहुत खूबसूरत गीत और इनका क्या करूँ मैं,आयुष चराग का अद्भुत गीत रहा।
 गजल संग्रह ‘बाकी इश्क में सब अच्छा है’ की लेखिका शायरा माधवी शंकर ने उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों केा शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि
कोई भी लम्हा उसे जी रहे लोगों की वजह से ख़ास बनता है..ऐसा ही एक पल,एक शाम, एक महफ़िल रविवार की शाम सजी जब कई मुस्कुराते चेहरे एक साथ एक ही जज़्बे को जीते हुए दिखाई दे रहे थे और वो था मुहब्बत..ये सिर्फ़ आप सब की मुहब्बत ही है कि मेरी ख़ुशी में शरीक होने का वक्त निकाला और मेरे बुलावे पर आए। जितनी बार सब की तरफ़ नज़र गई मैं ख़ुद को यक़ीन दिला रही थी कि हाँ ये हक़ीक़त है।
 
माधवी शंकर ने कहा कि फ़रहत साहब,प्रवीण जी,शाहिद भाई,पापा जी और हिमांशु के हाथों मेरी किताब की रू-नुमाई हुई। मेरी किताब पर फ़रहत साहब की बेशक़ीमती राय मेरे लिए ऐसा है जैसे अपनी नोटबुक पर अपने टीचर से शाबाशी मिलना, उनका एक एक लफ़्ज़ ख़ुद को और बेहतर बनाने का हौसला देता है
तरुणा मिश्रा दी की बेहतरीन निज़ामत में एक छोटी सी नशिस्त को ख़ूबसूरत ढंग से अंजाम दिया गया। और इन सब के बीच मौक़ा मिला तो अपने दिल की कुछ बातें भी आप सब से बाँट सकी।बहुत सुन्दर ढंग से हर सेशन पूरा हुआ । सब एक दूसरे को सुनने में खोए हुए थे ऐसा लग रहा था हर कोई एक दूसरे का पसंदीदा है। मेरे लिए यक़ीनन ये कभी न भूल पाने वाला दिन था।

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